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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय | Jaishankar Prasad ka jivan parichay

महान लेखक और जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30 जनवरी 1889 ईस्वी  में  काशी के 'सुंघरी साहू' नामक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवीप्रसाद था, अथवा उनके माता का नाम मुन्नी देवी थी। उनके यहां तंबाकू के व्यापार होता था। उनके पिता शिवरत्न साहू थे। जो की परम शिव भक्ति अथवा दयालु थे। अत्यधिक उदार अथवा साहित्य प्रेमी उनके पिताजी भी थे। जयशंकर प्रसाद जी का बचपन बहुत ही खुशी से बीता था। 

बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओकारेश्र्वर, उज्जैन, पुष्कर, ब्रज इत्यादि तीर्थो की यात्राएं की। यात्रा से लोटने के बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई, फिर चार वर्ष के बाद उनकी माता की मृत्यु हो गई। उनके पिता और माता की मृत्यु हो जाने के बाद उनका शिक्षा-दीक्षा अथवा पालन -पोषण  उनके बड़े भाई संम्भूरत्न ने किया था। प्रसाद जी का नाम क क्वींस कॉलेज में लिखवाया गया ,किंतु वहां पर उनका मन नहीं लगा।

Jaishankar Prasad ka jivan parichay

उन्होंने अंग्रेजी अथवा संस्कृत का अध्ययन स्वाध्याय से अपने घर पर ही प्राप्त किये। प्रसाद जी मैं बचपन से ही साहित्या अनुराग थे। वह साहित्यक पुस्तक पढ़ते अथवा काव्य - रचना करता था। उनके बड़े भाई उनकी काव्य - रचना में बाधा डालता था, परंतु जब उन्होंने देखा कि प्रसाद जी का पूरा मन काव्य - रचना में लगता है, तब उन्होंने अपने भाई प्रसाद जी को पूरी स्वतंत्रता उन्हें दे दी, प्रसाद जी स्वतंत्र रूप से काव्य - रचना के मार्ग पर पड़ने लगा। 

जयशंकर प्रसाद जी का पहला विवाह सन 1909 ईसवी में विंध्यवाटिनी देवी के साथ हुआ था। किंतु सन 1916 ईस्वी में टीवी बीमारी होने के कारण उनकी पत्नी विंध्याटिनी देवी का मृत्यु हो गई। हालांकि उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद उन्होंने अकेले रहने का मन बना लिया था, लेकिन उनकी भाभी ने दोबारा शादी के लिए उन्हें मना लिया और उनकी दूसरी शादी सन 1917 ईस्वी में कमला देवी के साथ करा दी गई। उन्होंने मात्र आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, पाली अथवा उर्दू भाषा तथा  साहित्य का विशदज्ञान प्राप्त किए थे। 

प्रसाद जी छायावाद के कवि थे। यह एक प्रयोगधर्मी रचनाएं भी थे। सन् 1926 ईस्वी से 1929 ईस्वी तक प्रसाद जी के कई दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। जयशंकर प्रसाद जी कवि, उपन्यास, नाटककार, कथाकार इत्यादि है। हिंदी काव्य  में खड़ी बोली के माधुर्य का विकास उनके आने से ही हुआ था। कुछ वर्ष के बाद उनके बड़े भाई शम्भूरत्न का निधन हो गया, और उनकी घर की स्थिति और खराब हो गई अत: व्यापार भी नष्ट हो गया था। उन्होंने मात्र 9 साल की आयु में अपने गुरु- "रसमय सिद्ध" को एक सवैया लिखकर दिया जिसका नाम था, 'कलाधर' था। 

जयशंकर प्रसाद जी ने तीन सादियों किए थे, लेकिन उनकी तीनों पत्नियों की मौत हो गई थी। काव्य - रचना के साथ-साथ नाटक, कहानी एवं उपन्यास विद्या में ही उन्होंने अपना कौशल दिखाया था। जयशंकर प्रसाद जी की प्रतिभा बहुमुखी है, परंतु साहित्य के क्षेत्र में कवि एवं नाटककार के रूप में  इनकी रव्याती विशेष है। छायावादी कवियों में अग्रगणय था। प्रसाद जी का कामायनी अन्यतम काव्य ग्रंथ है, जिसकी तुलना संस्कार के श्रेष्ठ काव्यो से किया जा सकता है। सत्यम शिवम सुंदरम का जीता जगता रुप  प्रसाद जी के काव्य में मिलता है। 

उन्होंने मानव सौंदर्य के साथ-साथ प्रकृति सौंदर्य का सजीव अथवा मौलिक वर्णन किया उन्होंने ब्रज भाषा एवं खड़ी बोली दोनों का प्रयोग किया था। उनका भाषा संस्कृतनिष्ठा था। जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के स्वनाम धन्य रत्न थे। उन्होंने काव्य, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है - आसु, कामायनी, चित्राधार, लहर और झरना (काव्य )आंधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि, आदि (कहानी) तितली, कंकाल और इरावती (उपन्यास)  सज्जन, कल्याणी परिणय, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, अजातशत्रु, प्रायश्चित, जनमेजय, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री, कामना, नागयज्ञ, करुणालय एवं एक चूट इत्यादि (नाटक)। सन 1912  ईसवी में 'इंदु' में उनकी  पहली कहानी 'ग्राम' प्रकाशित हुआ था। 

उन्होंने कुल 72 कहानियों लिखा था  प्रसाद जी ने 8 ऐतिहासिक, तीन पौराणिक अथवा दो भावात्मक कुल 13 नाटकों की सर्जना की। अपने काव्य लेखक की शुरुआत जयशंकर प्रसाद जी ने ब्रजभाषा में किए थे। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से भावनात्मक, विचारात्मक , इतिवृतात्मक अथवा चित्रात्मक भाषा शैली का प्रयोग देखने को मिलता है। उनकी शैली बहुत मीठी अथवा सरल भाषा में थी उनको कोई भी आसानी से पढ़ लेते और समझ भी सकता था। इरावती (उपन्यास)  प्रसाद प्रसाद जी का अधूरा उपन्यास जिनका प्रशासन उनकी मृत्यु के बाद सन 1940 ईस्वी में हुआ था। सन 1907  ईस्वी में उनके बड़े भाई शम्भूरत्न का मृत्यु हो गया और उसके बाद उनकी घर की स्थिति और खराब हो गई। पैतृक सम्पत्ति में बेचने से कर्ज से मुक्त हो गाए। 

कुछ वर्ष के बाद उनके छोटे भाई का भी मृत्यु हो गया।  जयशंकर प्रसाद जी इन सभी असामयिक मौतों से भी अंदर- ही - अंदर टूट गए थे । प्रसाद जी को संघर्ष। अथवा चिंतामोनी स्वास्थ को बहुत हानि पहुंचाई। क्षय रोग से पीड़ित होने के कारण 15 नवंबर 1937 ईस्वी को उनका मृत्यु हो गया था।

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