डॉ राजेद्र प्रसाद का प्रारंभिक जीवन
डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 3 सितंबर,1884 ईस्वी को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय अथवा उनकी माता का नाम कामेश्वरी था, देश की एक धर्म परायण महिला थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के पिता संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने भाई बहनों से सबसे छोटा था। राजेंद्र प्रसाद को अपनी माँ और बड़े भाई से काफी लगाव था। उनका परिवार गांव के सम्मानित कृषक परिवार में से थे। राजेंद्र प्रसाद के पूर्वज मूल रूप से कुआं गांव अमोरा उत्तर प्रदेश का निवासी कहलाते थे। वह भारत देश के एक महान नेता थे। राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई, उन्होंने भारत के निर्माण में भी अपना योगदान दिए थे।
डॉ राजेद्र प्रसाद: शिक्षा
डॉ राजेंद्र प्रसाद की आरंभिक शिक्षा छपरा के जिले स्कूल में हुआ था। आगे की पढ़ाई उन्होंने पटना में जारी रखा था। सन 1902 ईसवी में उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसिडेंसी कांग्रेस में प्रवेश लिया। उस वक्त राजेंद्र प्रसाद जी 18 वर्ष के थे। सन 1915 ईस्वी में उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ विधि परास्त्रातक की परीक्षा पास की और बाद में विधि के क्षेत्र में ही उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की। 5 वर्ष की आयु मैं राजेंद्र प्रसाद को उनके समुदाय के सुपुर्द कर दिया गया, जिनसे उन्हें फारसी सिखाइए बाद में उन्हें हिंदी और अंकगणित भी सिखाई गई। 12 वर्ष की आयु में राजेंद्र प्रसाद जी का विवाह राजवंशी नामक युवती से हो गया।
विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। राजेंद्र बाबू का वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखी रहा। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एम. ए. , एल. एल. बी.की परीक्षा उत्तीरण की थी। राजेंद्र प्रसाद जी ने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किए और उन्हें 30 रुपए मासिक छात्रवृत्ति दिया गया था। जहां उनके शिक्षकों में महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस अथवा माननीय प्रफुल्ल चंद्र राय मौजूद थे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद कार्य एवं राजनीती
उन्होंने कुछ समय तक मुजफ्फरपुर के कॉलेज में अध्यापक का कार्य किया और बाद में पटना और कोलकाता हाई कोर्ट में वकील भी रहे। लेकिन उस वक्त गांधीजी के आदर्शों और सिद्धांतों से बहुत प्रभावित हुए थे। आत: उन्होंने वकालत छोड़कर चम्पारण के आंदोलन में सक्रिय भाग लिए थे। यह तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस के सभापति अथवा भारत के संविधान का निर्माण करने वाली सभा के सभापति चुने गए थे। सदा जीवन उच्च विचार'उनके जीवन का पूर्ण आदर्श थे। उनकी प्रतिभा निष्पक्षता था अथवा ईमानदारी को देख कर उनको भारत देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में
पुरस्कार और राजनीतिक आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 ईस्वी को भारत देश को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ ही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। बाद में उन्होंने विज्ञान से हटकर कला के क्षेत्र में एम. ए. और कानून में मास्टर्स की परीक्षा को पूरा किया। इसी बीच वर्ष 1905 ईसवी मैं अपने बड़े भाई महेंद्र के कहने पर राजेंद्र प्रसाद जी स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए। राजेंद्र प्रसाद जी सतीश चंद्र मुखर्जी और बहान निवेदिता द्वारा संचालित 'डॉन सोसाइटी' से भी जुड़े। राजेंद्र प्रसाद जी ने 12 वर्ष तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के पश्चात वर्ष 1962 ईस्वी में अपने अवकाश की घोषणा किया। पूरे भारत देश में अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेंद्र बाबू या देशरत्न कह कर पुकारते थे। सन 1962 ईस्वी में उनके उत्कृष्ट कार्यो के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था।
राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखल अंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद धर्म, वेदांत, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, भाषा, शिक्षा, राजनीतिक आदि विषयों पर वे हर स्तर पर अपना विचार व्यक्त करता था। सन 1957 ईस्वी में वे दोबारा राष्ट्रपति चुने गए थे। इस तरह वे भारत देश के एकमात्र राष्ट्रपति थे, जिन्होंने लगातार दो बार राष्ट्रपति के पद पर बैठे थे। भारतीय संविधान के लागू होने से 1 दिन पहले 25 फरवरी को उनकी बहन भगवती देवी का मृत्यु हो गया था। लेकिन वह भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद ही वे दाह संस्कार देने गए।
डॉ राजेंद्र प्रसाद एक साधारण पुरुष के रूप में
राजेंद्र प्रसाद जी का देशभूषण बड़े ही साधारण था, उनके चेहरे मोरे को देखते तो पता ही नहीं चलता था कि वह इतने प्रतिभा संपन्न और उच्च व्यक्तित्व वाले सज्जन है, देखने में भी एक समान किसान से लगते थे। बाद में उन्होंने राजनीतिक से सन्यास ले लिए थे। सेवा, त्याग, सादगीपूर्ण, देशभक्ति जीवन बिताने वाला अथवा स्वतंत्र आंदोलन में अपने आप को पूरी तरह से संपूर्ण करने वाले डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपना शेष जीवन पटना के निकट एक आश्रम में जीवन बिताया, जहां बीमारी के कारण सन 28 फरवरी 1963 ईस्वी को उनका निधन हो गया। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने चट्टान सदृश्य आदर्श एवं श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों के लिए राष्ट्रीय के लिए वे सदैव प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे।
0 Comments