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सूर्यकांत त्रिपाठी: Suryakant Tripathi Nirala Jeevan Parichay

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म 21 फरवरी 1899 ईस्वी को बंगाल के मेदिनीपुर नामक जिले में बसंत पंचमी के शुभ दिन पर हुआ था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था, अथवा उनके माता का नाम रुक्मिणी देवी था। निराला जी के पिता महिषादल के राजा के पास नौकरी करते थे। निराला जी जब 3 वर्ष के वायु में थे उस वक्त उनके माता का मृत्यु हो गया था। निराला जी का पालन-पोषण इनकी पिता के कठोर अनुशासन के द्वारा हुआ था।

Suryakant Tripathi Nirala Jeevan Parichay

सूर्यकांत त्रिपाठी का शैक्षिक जीवन

निराला जी का प्रारंभिक शिक्षा बंगला माध्यम से हुआ था, उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त किए थे। बचपन में वे बहोत वैभवी छात्र थे अथवा उनकी रूचि घुड़सवारी, कुश्ती और अन्य खेलों में थी, इसके साथ-साथ निराला जी रामचरित मानस का काव्य पाठ भी किया करता था। उनके पास  हिंदी, संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान था।

निराला जी का पारिवारिक जीवन 

निराला जी जब 15 वर्ष की आयु के थे, उसी वक्त उनका विवाह मनोहरा देवी के साथ हो गया था। निराला जी के पत्नी ने एक लड़के अथवा एक लड़की को जन्म दी थी। और फिर  कुछ वर्ष के बाद उनकी पत्नी मनोहरा की मृत्यु हो गई। उन्होंने हिंदी भाषा पर अपना पूर्ण अधिकार अपनी पत्नी के द्वारा किया था किंतु यह सब देखने से पहले ही उनकी पत्नी का मृत्यु हो गया था। कुछ दिनों के बाद उनके पिताजी का भी मृत्यु हो गया और सदा के लिए इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। पिताजी की मृत्यु हो जाने के बाद निराला जी ने मोदिनीपुर में कुछ दिनों तक नौकरी की और उसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और लखनऊ में जाकर बस गए थे। निराला जी  प्रूफ लीडर के तौर पर एक पत्रिका में काम किया और फिर उन्होंने समन्वय नामक पत्रिका का संपादन किया। लेकिन इस पत्रिका के द्वारा भी उनको कुछ आमदनी नहीं हो पाया और उन्होंने इस पत्रिका में भी काम करना छोड़ दिया था। निराला जीवन भर कष्ट उठाने के बाद भी उन्होंने अपना जीवन हिंदी के क्षेत्र में समर्पित कर दिया।

निराला जी के जीवन का साहित्य पर प्रभाव

निराला जी जैसे तैसे करके अपनी पुत्री सरोज का विवाह किया  था। लेकिन 1 वर्ष के बाद ही उनकी पुत्री का मृत्यु हो गया। यही कारण था, उन्होंने 1936 ईस्वी में सरोज स्मृति नामक कविता की रचना की। निराला जी के पत्नी के वियोग के समय ही उनका परिचय महावीर प्रसाद द्विवेदी से हुआ था। उनके जीवन पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस अथवा विवेकानंद का बहुत  गहरा प्रभाव था। निराला जी, महाकवि जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा और सुमित्रानंदन पंत आदि छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने  जाते है। निराला जी के पंक्तियाँ बहुत प्रकार के हैं जैसे की -मुझ भग्यहीन कि तू सम्बल, युग वर्ष बाद जब हुई विकल, दुख ही जीवन की कथा रही क्या कहूं तन सदा मध, इस पथ पर, मेरे कार्य शकल, हो भ्रष्ट शीत के से शतदल, कन्ये गत कर्मों का अर्पण, कर दुख और तकलीफ सहते हुए अपना अंतिम वक्त में अध्यात्म की ओर मुड़ गए। 

निराला जी के कार्य

निराला जी अपने अंतिम दिनों में कई रचनाएं भी लिखे हैं जैसे कि- जूही की कली, सरोज स्मृति वह तोड़ती पत्थर, राम की शक्ति पूजा, रानी और कानी, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, और कुछ कविताएं भी यह सारी कविताएं लिखी है। जैसे की- देवी लिली, चतुरी चमार, कुल्ली भाट, बकरिया गाघ, बिल्लीसुर लिखे हैं। सन 1916 ईस्वी में निराला जी की अत्यधिक लोकप्रिय रचनाएं लिखी है। सन 1916 ईस्वी में ही हिंदी, बंगला का तुलनात्मक व्याकरण (सरस्वती) में प्रकाशित हुआ था। 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावाद के चार कवियों में से एक महत्वपूर्ण कवि थे। जिन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास,निबंध आदि विधाओं की रचना की है। अथवा (समन्वय और मतवाला) के संपादक के कार्य भी किए हैं। सन 1535 ईस्वी को भारत में प्रगतिशील आंदोलन आरंभ हुआ था। हिंदी साहित्य के प्रतिवादी आंदोलन ने राष्ट्र के स्वस्थ समाजिक की चेतना दी। निराला जी विद्रोह स्वभाव के कवि थे। उनकी कविताओं में समाज की विषय हस अवस्था का चित्रण किया गया था। उन्होंने जातीय मतभेदों अंधविश्वासों, छल कपट, स्वार्थ, दरिद्रता को अपने काव्य में विषय बनाया था। निराला जी के रचनाएं में कई प्रकार के भाव पाए जाते हैं। यद्यपि वे प्राय: खड़ी बोली के कवि थे, किंतु वे ब्रजभाषा एवं अवधी भाषा में भी कविताएं पढ़ लेता था। अपने रचनाओं में कहीं प्रेम की सघनता है, कहीं अध्यात्मिकता तो कहीं देश - प्रेम का जज्बा तो कहीं सामाजिक रूढ़ियों का विरोध तो कहीं प्रकृति के प्रति झलकता अनुराग।

निराला जी के उपन्यास और अंतिम दिन 

निराला जी के कुछ उपन्यास इस प्रकार है - अप्सरा, अल्का, प्रभावती, निरुपमा, चमेली, उच्चश्रखलता, काले कारनामे। निराला जी के पिता का वास्तविक निवास बांसवाड़ा अन्नव जिले के गाढ़ा कोला गांव के निवासी था। निराला जी की प्रगतिशील काव्य का आरंभ रूपाभ के प्रकाशन से हुआ है, और भारतीय नवजागरण के जागरूक कवि कहलाया था। निराला जी हिंदी में मुफ्त के लिए प्रसिद्ध है। अथवा उनके गीत गाएको को के गीतों की भांति राग- रागिनीयो को रूढ़ियो से बंधे हुए नहीं थे। निराला जी के रचनाओं में भाषा तत्सम शब्द बहुत अधिक है। अथवा सामासो की अधिकता है, अथवा निराला जी लोज और ओदात्य के कवि थे। निराला जी ने अपना जीवन का अंतिम वक्त इलाहाबाद में बिताया। 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 ईस्वी को दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में हुआ था।

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